
महाराज अग्रसेन जयंती स्पीच 2018 – Maharaj Agrasen Jayanti Speech in Hindi 2018
महाराज अग्रसेन जयंती स्पीच 2018: महाराज अग्रसेन जयंती स्पीच 2018 – Maharaj Agrasen Jayanti Speech in Hindi 2018 महाराज अग्रसेन अग्रवाल अर्थात वैश्य समाज के जनक कहे जाते हैं . अग्रसेन जी का जन्म क्षत्रिय समाज में हुआ था . उस समय आहुति के रूप में पशुओं की बलि दी जाती थी . जिसे अग्रसेन महाराज पसंद नहीं करते थे . अग्रसेन जी का जीवन चरित्र, धर्म नीति, सिद्धांतों की पावन कथा सदियों से विलुप्त रही. इसलिए यह छोटी सी कोशिश है . उनका जीवन परिचय कराने की महाराजा अग्रसेन लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष बाद भी पूजनीय है . तो इसलिए नहीं कि वे एक प्रतापी राजा थे .
अपितु इसलिए कि क्षमता, ममता और समता की त्रिविध मूर्ति थे महाराजा अग्रसेन . उनके राज में कोई दु:खी या लाचार नहीं था . वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजावत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले सभी जीव मात्र से प्रेम रखने वाले दयालु राजा थे .
महाराज अग्रसेन जयंती स्पीच
सम्मानित अतिथीगढ़ अभिभावक और मेरे प्रिय सहयोगियों के लिए आज एक बहुत ही अच्छा दिन है, “जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हम यहां अग्रसेन जयंती नामक एक अच्छा अवसर मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं, मैं आप सभी के सामने इस सुनहरे अवसर पर एक भाषण आपके समछ पेश कर रहा हूँ.
महाराजा अग्रसेन जी का जन्म सुर्यवंशी भगवान श्रीराम जी की चौतीस वी पीढ़ी में द्वापर के अंतिम काल (याने महाभारत काल) एवं कलयुग के प्रारंभ में अश्विन शुक्ल एकम को हुआ. कालगणना के अनुसार विक्रम संवत आरंभ होने से 3130 वर्ष पूर्व अर्थात ( 3130+ संवत 2073) याने आज से 5203 वर्ष पूर्व हुआ. वे प्रतापनगर के महाराजा वल्लभसेन एवं माता भगवती देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे. प्रतापनगर, वर्तमान में राजस्थान एवं हरियाणा राज्य के बीच सरस्वती नदी के किनारे स्थित था.
महाराज अग्रसेन जयंती स्पीच इन हिंदी
करने पड़े थे दो विवाह महाराजा अग्रसेन जी का पहला विवाह नागराज कन्या माधवी जी से हुआ था. इस विवाह में स्वयंवर का आयोजन किया गया था, जिसमें राजा इंद्र ने भी भाग लिया था. माधवी जी के अग्रसेन जी को वर के रुप में चुनने से इंद्र को अपना अपमान महसूस हुआ और उन्होंने प्रतापनगर में अकाल की स्थिति निर्मित कर दी. तब प्रतापनगर को इस संकट से बचाने के लिए उन्होंने माता लक्ष्मी जी की आराधना की. माता लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर अग्रसेन जी को सलाह दी कि यदि तुम कोलापूर के राजा नागराज महीरथ की पुत्री का वरण कर लेते हो तो उनकी शक्तियां तुम्हें प्राप्त हो जाएंगी. तब इंद्र को तुम्हारे सामने आने के लिए अनेक बार सोचना पडेगा. इस तरह उन्होंने राजकुमारी सुंदरावती से दूसरा विवाह कर प्रतापनगर को संकट से बचाया.
Maharaj Agrasen Jayanti Speech in Hindi 2018

महाराज अग्रसेन जयंती स्पीच 2018 – Maharaj Agrasen Jayanti Speech in Hindi 2018
सम्मानित अतिथीगढ़ अभिभावक और मेरे प्रिय सहयोगियों के लिए आज एक बहुत ही अच्छा दिन है, “जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हम यहां अग्रसेन जयंती नामक एक अच्छा अवसर मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं, मैं आप सभी के सामने इस सुनहरे अवसर पर एक भाषण आपके समछ पेश कर रहा हूँ.
महाराज अग्रसेन, अग्रवाल अर्थात वैश्य समाज के जनक कहे जाते हैं. अग्रसेन जी का जन्म क्षत्रिय समाज में हुआ था. उस समय आहुति के रूप में पशुओं की बलि दी जाती थी, जिसे अग्रसेन महाराज पसंद नहीं करते थे और इस कारण उन्होंने क्षत्रिय धर्म त्याग कर वैश्य धर्म स्वीकार किया था. कुल देवी लक्ष्मी जी के मतानुसार उन्होंने अग्रवाल समाज की उत्त्पत्ति की इस प्रकार वे अग्रवाल समाज के जन्मदाता देव माने जाते हैं. इन्होने व्यापारियों के राज्य की स्थापना की थी. यह उत्तरी भाग में बसाया गया था, जिसका नाम अग्रोहा पड़ा था. अग्रवाल समाज के लिए अठारह गौत्र का जन्म इनके अठारह पुत्रो के द्वारा ऋषियों के सानिध्य अठारह यज्ञों द्वारा किया गया था .
Maharaj Agrasen Jayanti Speech in Hindi
महाराजा अग्रसेन ऐसे कर्मयोगी लोकनायक हैं जिन्होंने बाल्यकाल से ही, संघर्षों से जूझते हुए अपने आदर्श जीवन कर्म से, सकल मानव समाज को महानता का जीवन-पथ दर्शाया . अपनी आत्मशक्ति को जाग्रत कर, विश्व उपदेष्टा का महत कार्य किया .
चैतन्य आनंद की अगणित विशेषताओं से संपन्न, परम पवित्र, परिपूर्ण, परिशुद्ध, मानव की लोक कल्याणकारी आभा से युक्त महामानव अग्रसेन की महिमा से अनभिज्ञ होने के कारण उन्हें एक समाज विशेष का कुलपुरुष घोषित कर इतिहास ने हाशिए पर डाल दिया .
अग्रसेनजी सूर्यवंश में जन्मे. महाभारत के युद्ध के समय वे पन्द्रह वर्ष के थे . युद्ध हेतु सभी मित्र राजाओं को दूतों द्वारा निमंत्रण भेजे गए थे . पांडव दूत ने वृहत्सेन की महाराज पांडु से मित्रता को स्मृत कराते हुए . राजा वल्लभसेन से अपनी सेना सहित युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था .
महाभारत के इस युद्ध में महाराज वल्लभसेन अपने पुत्र अग्रसेन तथा सेना के साथ, पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए. युद्ध के 10वें दिन भीष्म पितामह के बाणों से बिंधकर वीरगति को प्राप्त हो गए थे . युद्धोपरांत महाराजा युधिष्ठर ने भगवान कृष्ण के नेतृत्व में जो राजा व राजपुत्र शेष रहे थे. उन्हें बिदा किया महाराजा अग्रसेन ने लोक कल्याणार्थ किए गए यज्ञ में पशु बलि देने से इंकार कर दिया . इस प्रकार क्षात्रवर्ण की आहुति देकर वैश्य वर्ण को उन्होंने अपना लिया .
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